क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड से बदल जाएगी भारतीय समाज की तस्वीर?
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रवि कुमार माँझी |
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का सबसे प्रमुख कारण है सामाजिक समानता और न्याय। जब सभी नागरिकों के लिए समान कानून होंगे, तो किसी भी धार्मिक या जातिगत आधार पर भेदभाव की संभावना कम हो जाएगी। यह न केवल महिलाओं के अधिकारों को सुदृढ़ करेगा, बल्कि उन कमजोर वर्गों के लिए भी लाभकारी होगा जो विभिन्न धार्मिक कानूनों के तहत अन्याय का सामना करते हैं। एकता में ही शक्ति है, और यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) इसका सबसे बड़ा उदाहरण बन सकता है। जब देश के सभी नागरिक एक ही कानून के अधीन होंगे, तो यह राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देगा। यह भारत के संवैधानिक लक्ष्यों के अनुरूप भी है, जो "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की परिकल्पना को साकार करता है।
यूसीसी के बाद क्या होंगे बदलाव
अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी। वहीं, गांव स्तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी। अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा। पति और पत्नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे। एक से ज्यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। नौकरीपेशा बेटे की मौत होने पर पत्नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी और उत्तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा।
दुनिया के कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। इनमें पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है। यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है।
अब तक देश में क्यों लागू नहीं हो पाया यूसीसी?
भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है। हालात ये हैं कि एक ही घर के सदस्य अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानते हैं। अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं लेकिन, अलग राज्यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा। इसी तरह मुसलमानों में शिया, सुन्नी, वहावी, अहमदिया समाज में रीति रिवाज और नियम अलग हैं। ईसाइयों के भी अलग धार्मिक कानून हैं। वहीं, किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं तो कहीं विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता और कहीं बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है। समान नागरिक संहिता लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे। हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता व सुरक्षा देने की बात कही गई है।
चुनौतियाँ और समाधान
यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क यह है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है। विभिन्न समुदायों के लोग इसे अपनी धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों पर खतरे के रूप में देखते हैं। इसके अलावा, यह भी तर्क दिया जाता है कि इतने बड़े और विविध देश में एक समान कानून को लागू करना संभव नहीं है। इस विषय में सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए यह आवश्यक है कि पहले विभिन्न समुदायों के बीच संवाद स्थापित किया जाए। उनकी चिंताओं और मुद्दों को समझा जाए और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। इसके साथ ही, यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रारूप ऐसा होना चाहिए जो सभी समुदायों के अधिकारों और परंपराओं का सम्मान करे।
निष्कर्ष
यूनिफॉर्म सिविल कोड समय की मांग है और इसे लागू करना एक मजबूत और एकजुट भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करते समय सामाजिक संवेदनाओं और धार्मिक स्वतंत्रता का पूरा ध्यान रखना होगा। एक संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण से ही इसे सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है, ताकि एक नए, न्यायपूर्ण और समान भारत का निर्माण हो सके।
लेखक: रवि कुमार माँझी
(अबु धाबी, संयुक्त अरब अमीरात)
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